श्री स्वामी समर्थ कृपा स्तोत्र | Shree Swami Samarth Kripa Stotra

श्री स्वामी समर्थ कृपा स्तोत्र
श्री स्वामी समर्थ कृपा स्तोत्र

|| श्री स्वामी कृपा स्तोत्र ||


|| ॐ श्री सद्गु रु अक्कलकोट स्वामी समर्थ ||

|| ॐ श्री गणेशाय नम: || ॐ श्री सरस्व़त्यै नम: ||

||ॐ श्री सर्वशक्तिमूर्तये नम: ||

ॐ परात्पर जगत्गुरु नमो |आता नमू मयुरवाहिनी | 

जी शब्दविश्वाची स्वामिनी |वंदन करुया तियेसी ||1||

जो सकल विश्वाचा आधार | निर्गुण आणि निराकार |

तो ब्रम्हा-विष्णु-महेश्वर | सद्भावे वंदू त्रैमूर्ती ||2||

त्रैमूर्तिचा महिमा अपार | गुरुचरित्री वर्णिला साचार |

स्तुति करता अपरंपार | वेद चारी शिणले ||3||

कर्दलवनी झाले गुप्त | साक्ष ठेवून गाणग क्षेत्र |

निर्गुण पादुका पवित्र | भक्तांसाठी ठेवियल्या ||4||

पंढरीचा पांडुरंग | ज्यासी आवडे संतसंग |

तारिले तुक्याचे अभंग | त्यासी प्रणिपात अंतरी ||5||

करु या साष्टांग दंडवत | त्रैमूर्ती श्रीगुरुदत्त |

अक्कलकोटी यति समर्थ | सद्भावे नमू अंतरी ||6||

आता श्री स्वामीरायांचे अख्यान | भाविकतेने करा श्रवण |

सर्वसुखाचे निधान | लाभेल स्तविता सर्वांसी ||7||

भक्तीचा करुनी सोहळा | दाखवी अगम्य लीला |

ऐसी ख्याती त्रैलोक्याला | मी पामर काय वर्णू ||8||

नृसिंहसरस्वती गुरुस्वामी | गुप्त जाहले कर्दलवनी |

येतां पुनश्च धर्मा ग्लानी | अक्कलको टी अवतरले ||9||

कर्दलवनी गुप्त जाहला | अबू पहाडी प्रगटला |

अवधूत मानवरुपे आला | अक्कलकोटी माझारी ||10||

श्री गुरुस्वामी यति पाहिला | मूर्तिमंत तेजाचा पुतळा |

कंठी रुळती रुद्राक्षमाळा | पद्मासनी स्थित असे ||11||

शांत गंभीर दिसे रुप | हेमसंकाश तनु अनुरुप |

नेत्रकमलांची कृपाझेप | भक्तावरी सर्वदा ||12||

भाली शोभे कस्तुरी तिलक | साजिरे दिसे नासिक |

ओष्ठ हनुवटी सुंदर मुख | चंद्रापरी दिसतसे ||13||

समुत्कंठ पाहू चला | आजानुबाहू शिव भोळा |

कंठा भूषवी त्रिदलमाला | नृसिंहभान गुरुस्वामी ||14||

निम्ननाभी दिठी सुंदर | धूर्जटी कौपीन कटीवर |

दत्त नरहरी यतिवर | धीपुरी प्रगटलासे ||15||

अखिल विश्वी विश्वंभरु | भक्तजन सुरतरू |

या हो सकल पादपद्म धरु | देहबुध्दी करु दुर ||16||

मम हृदयीं ठसो मूर्ति | शंख चक्रांकित गदा हाती |

कामधेनुसह चतुर्वेद मूर्ती | सदैव रा हो अंतरी ||17||

अबूगिरीवरुनी हृद्कमली | वेगे येई गुरुमाऊली |

रत्नखचित सिंहासनी बैसली | भक्तकाज करावया ||18||

आतां करितों तुझी पूजा | रमावरा अधोक्षजा |

सप्रेमें क्षाळितो पदरजा | अर्ध्य देई स्वकरी ||19||

मधुर सुवासिक शीतळ | गंगोदक जळनिर्मळ |

पंचामृत स्नान सचैल | निजहस्ते घा लितो ||20||

स्नान करुनी, करा आचमन | भरजरी पितांबर नेसून |

शालजोडी पांघरुन | सुखे घेई स्वा मीया ||21||

चंद्रोपम उपवीत घालुनी | रत्नाभरणे, कौस्तुभमणी |

कस्तुरी टिळा लेवुनी | चंदन उटी लावावी ||22||

निराकार, निर्गुण गोपाळा | कंठा भूषवी तुलसीमाळा |

बिल्व-शमी दुर्वांकुराला | सहस्त्रनामें अर्पितो ||23||

अष्टगंध, बुक्का सुगंध | सौरभे होती दिशा धुंद |

अर्पितो दीप स्वानंद | मानुनी घेई गुरुराया ||24||

रत्नखचित चौरंगावरी | सुवर्णताटी पक्वान्ने सारी |

दहि-दूध लोणचे कोशिंबिरी | पंचखाद्य नैवेद्य सेवा जी ||25||

कर्पूरोदके धुवोनि हस्त | घालितो करी पंचामृत |

प्राणापान, व्यान, उदान समस्त | तूचि अससी स्वामिया ||26||

गुरुमूर्ती तू षड्रस | मीहि त्यांस ऐक्य सहज |

दिव्य सच्चित रुप निज | वेदपूर्ण भरले असे ||27||

वदनसुवासा तांबूल | त्रयोदशगुणी निर्मळ |

मुखशुध्दिस नारळ | घ्यावा आता गुरुराया ||28||

भक्तवत्सला स्वामिराजा | अंगिका रावी माझी पूजा |

नमस्कारोनी अधोक्षजा | श्रीमुख बघतो न्याहाळुनी ||29||

तव आरती ओवाळिता | नासती अनंत ब्रम्हहत्या |

वेद बोलतो वाणी सत्या | त्रिवार ऐसे सत्यचि ||30||

सनकादिक मुनी सुरवर | करिता स्वामींचा मीं जयकार |

मंत्रपुष्पांचा संभार | जडजीवासी उध्दरी ||31||

वेदघोष अति सुस्वर | प्रदक्षिणा घा ली वारंवार |

प्रेमे साष्टांग नमस्कार | अनंतासी दंडवत ||32||

अनंतकोटी ब्रम्हांडनायका | अनादि स्वरुपा गुरुराया |

लागलो आता तव पाया | भक्तकृपा ळा उध्दरी ||33||

छत्रचामरे वारीन | गंधर्वगान समर्पिन |

सुस्वर वाद्ये वाजवून | तुष्ट करितो तुजलागी ||34||

सुदिव्य, सुखशय्या मृदुल | ठेवी सुखासनी पदकमल |

चरण, अहर्निश चुरीन | सेवा मानून घ्यावी जी ||35||

सत्शिष्य भजनी रंगती | भजनानंदी विसावती |

संतसंगी जडो प्रीती | हेचि मागणे स्वामीया ||36||

शेष, व्यास, सरस्वती | गुणवर्णन करीती महामती |

भक्तस्तवन ऐकुनी श्रीपती | प्रसन्न व्हावे सत्वरी ||37||

विश्वंभर तू सौख्यराशी | भक्तकौतुक पुरविशी |

योगक्षेम चालविसी | ऐसी ख्याती त्रिभुवनी ||38||

निजनिर्माल्य प्रसाद देसी | उच्छिष्ट आंस सर्वांसी |

पूर्वपुण्ये येती फळासी | सेवा गुज ऐसे हे ||39||

सृष्टि-उत्पत्ति-स्थिती-संहारा | अवतार तुझाचि गुरुवरा |

ब्रम्हा-विष्णु-महेश्वरा | स्वामीरुपी शोभसी ||40||

रवि-चंद्रासी तेजाळले | ते तेजही तुजकडोनी आले |

निज-भक्त कार्य सगळे | तव प्रसादे लाभते ||41||

इह परत्र सौख्य देसी | कल्पतरुसम शोभसी |

जैसा भाव धरावा मानसी | तैसा त्यासी अनुभव ||42||

शिव-विष्णु-शक्ति-गणपति | स्वा मीरुपे सारे शोभती |

निगमागमही स्तविती | सत्यज्ञानानंद तू ||43||

त्रिविधताप हे निवारिसी | दीनजना उध्दरिसी |

क्षमा करावी दासासी | मागणे हेचि जीवनी ||44||

जीवात्मज्योति उजळुनी | तव प्रकाशे प्रकाशुनी |

पाहते नित्यचि स्तवनी | स्वामीराजा ||45||

ऐशी अतर्क्य स्वामीलीला | वणिर्ता वेदही शिणला |

तेथे मज पामराला | कैसी शक्ती ||46||

काया वाचा मानसी | इंद्रियाधीकृत कर्मासी |

अर्पितो परात्परा तुजसी | सारी सेवा ||47||

रामकृष्ण तू सर्वसाक्षी | पृथ्वीवर अवतार घेसी |

हरावया भूभारासी | पंढरी वास केला ||48||

पंढरीस श्रीविठ्ठल | गिरीवर विष्णु सोज्वळ |

करवीरी लक्ष्मी प्रेमळ | विश्वेश्वर का शीवासी ||49||

कलियुगी नृसिंह-सरस्वती | अत्रिनंदन गाणग क्षेत्री |

गुरु माणिक प्रभूही तूचि | अक्कलकोटी गुरुराया ||50||

जे भक्त तुजला भजती | अहर्निश राहे त्यांचे पाठी |

भक्त संरक्षणासाठी | अक्कलकोटी वास केला ||51||

स्तविता ही स्वामी माऊली | पापे अनंत जन्माची जळाली |

वाढविसी प्रेमसाऊली | वात्सल्य नांदे सर्वदा ||52||

असत्वृत्ति जावो विलया | सद्वृत्ती पावो जया |

सकलजनासी देवराया | सौख्य लाभो जगी या ||53||

गोवर्धन गिरी धरिसी | अग्निही तू प्राशिसी |

पार्थगुरु सारथी होसी | महिभार हरावया ||54||

अविनाशी अवतार दत्त | जगती आहे विख्यात |

अघटित लीला दावित | गाणगापुरी बैसला ||55||

गुरुतत्व गूढ सार | जाणताती भक्त थोर |

तोचि प्रज्ञापुरी यतिवर | भक्तकाजी रंगला ||56||

हे स्तोत्र करिता पठण | त्यासी न बा धे चिंता दारुण |

भवभय दु:खाचे निरसन | स्वामीकृपे होईल ||57||

अनन्यभावे करा स्मरण | साक्षात्कारे घ्यावे दर्शन |

हेचि सद्गु रु वचन | असत्य न होई सर्वथा ||58||

ठेवुनिया श्रध्दा भाव | मनी आळवा वा गुरुदेव |

भक्तासाठी घेई धाव | रक्षणासी सि ध्द सदा ||59||

वटवृक्षतळी जाण | श्रीसद्गु रु प्रतिमा ठेवून |

यथासांग करावे पूजन | षोडशोपचारे आदरे ||60||

मग करावे स्तोत्र पठण | नित्यश: एक आवर्तन |

अखंड करिता तीन मास पूर्ण | साक्षात् सद्गु रु भेटेल ||61||

श्री स्वामी समर्थ नाम | अनंत कोटींचा टीं कल्पद्रुम |

सकल संतांचा विश्राम | नामस्मरणीं नांदतो ||62||

स्वामीकृपा होता क्षणी | मुक्याते फुटेल वाणी |

पंगु जाईल उल्लंघुनी | उत्तुंग गिरीही लीलया ||63||

ऐसा महिमा अगाध | एकमुखी वर्णि ती वेद |

श्री स्वामी स्तोत्र केले सिध्द | आला धावून झडकरी ||64||

स्वामी प्रेमळ माउली | जैसे वत्साते गाऊली |

तुझी स्तुति स्त्रोते गायिली | तव प्रेमळ कृपेने ||65||

तूचि श्री व्यंकटेश | तुचि महारुद्र महेश |

अनंतकोटी जगदीश | श्री स्वामी समर्था सर्व तूचि ||66||

उत्पति, स्थिती आणि लय | तूचि सकलांचा आशय |

गुरूदेवा तुचि मम आश्रय | उपासका सांभाळी ||67||

तव करितां नामस्मरण | लाभे चित्ता समाधान |

तव चरणाशी वंदन | देवाधिदेवा समर्था ||68||

जे नर करतील आवर्तन | मनकामना त्यांची होईल पूर्ण |

सद्भक्तिचे अधिष्ठान | नित्य ठेवूनी अंतरी ||69||

हा ग्रंथ ज्याचे घरी | तेथे अन्नपूर्णा वा स करी |

सुख संपत्ति संसारी | लाभेल भाविकां निश्चिती ||70||

करितां ग्रंथाचे पठण | दुः ख दारिद्रय जाईल पळून |

भक्त सेवेसाठी येईल धावून | दयावंत स्वामीराज ||71||

येथे ठेवूनिया विश्वास | करावे ग्रंथ पारायणास |

दृष्टांत देवोनि त्वरेस | सांभाळीन तयालागी ||72||

हे सद्गु रूंचे सत्यवचन | श्रोते ऐका ध्यान देऊन |

पुरवील मोक्षसाधन | एकचि माझा स्वामीराज ||73||

विश्वामित्र गोत्र कुलोत्पन्न | देशपांडे उपनामाभिधान |

नाम माझे असे वामन | सद्गु रुचरणी लीन सदा ||74||

प्रतिभानुज हे संबोधन | घेतले श्रीगुरूने लिहवून |

झाली सेवा सफल पूर्ण | पूर्व सुकृतानुसार ||75||

स्तुतिस्तोत्राचा गुंफिला हार | भक्तिमंजिरी त्यावर |

घातली वैजयंती सुंदर | कंठी श्रीगुरुरायाचे ||76||

श्रीस्वामीराज स्तोत्र ग्रंथ | जाहला असे समाप्त |

मज पामरे वदविले गुरुनाथे | त्यांचे चरणी दंडवत ||77||

श्री स्वामी समर्थ दत्त | मंत्र हा मनी घोषित |

झाले चित्त अवघे तृप्त | पुनश्च चरणी दंडवत ||78||

देह अवघे अक्कलकोट | आत्मस्वरुपी श्री स्वामीसमर्थ |

त्यांचे ठायी दंडवत | वारंवार घाली तसे ||79||

इति श्रीस्वामीराज सगुण | भक्तांचे वैभव पूर्ण |

प्रतिभानुज करीतसे वर्णन | साष्टांग प्रणिपात करोनी ||80||

||श्री स्वामी समर्थार्पणमस्तु ||

|| इति श्रीअक्कलकोट स्वामी समर्थ स्तोत्र संपूर्णम् ||

|| शुभंभवतु || शुभंभवतु || शुभंभवतु ||

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